+ आगन्तुक मुनि का पर-गण में अनुशासन -
उब्भामगादिगमणे उत्तरजोगे सकलज्जआरम्भे
इच्छाकारणिजुत्तो आपुच्छा होइ कायव्वा ॥173॥
अन्वयार्थ : किसी ग्राम में जाते समय या आहार के लिए गमन करने में, मल-मूत्रादि त्याग के लिए जाते समय, अपने किसी भी कार्य के प्रारम्भ में और भी किन्हीं क्रियाओं के आदि में आचार्यों की इच्छा के अनुसार पूछकर कार्य करते हैं ।