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आर्यिकाएं के साथ आवास आदि क्रिया में दोष
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णो कप्पदि विरदाणं विरदीणमुवासयह्मि चिट्ठेदुं
तत्थ णिसेज्जउवट्ठणसज्झायाहारभिक्खवोसरणं ॥180॥
अन्वयार्थ :
आर्यिकाओं की वसतिका में मुनियों का रहना और वहाँ पर बैठना, लेटना, स्वाध्याय, आहार, भिक्षा व कायोत्सर्ग करना युक्त नहीं है ।