
थेरं चिरपव्वइयं आयरियं बहुसुदं च तवसिं वा
ण गणेदि काममलिणो कुलमवि समणो विणासेइ ॥181॥
अन्वयार्थ : आठ गुण सहित सिद्धों को, नव केवल लब्धि युक्त अरिहंतों को, केवलज्ञान की ऋद्धि काम से मलिन-चित्त श्रमण स्थविर, चिर-दीक्षित, आचार्य, बहुश्रुत तथा तपस्वी को भी नहीं गिनता है, कुल का भी विनाश कर देता है ।