+ आर्यिकाओं के प्रतिक्रमण आदि कैसे होंगे ? -
पियधम्मो दढधम्मो संविग्गोऽवज्जभीरु परिसुद्धो
संगहणुग्गहकुसलो सददं सारक्खणाजुत्तो ॥183॥
गंभीरो दुद्धरिसो मिदवादी अप्पकोदुहल्लो य
चिरपव्वइदो गिहिदत्थो अज्जाणं गणधरो होदि ॥184॥
अन्वयार्थ : जो धर्म के प्रेमी हैं, धर्म में दृढ़ हैं, संवेग-भाव सहित हैं, पाप से भीरू हैं, शुद्ध आचरण वाले हैं शिष्यों के संग्रह और अनुग्रह में कुशल हैं और हमेशा ही पाप-क्रिया की निवृत्ति से युक्त हैं । गम्भीर हैं, स्थिरचित हैं, मित बोलने वाले हैं, किंचित् कुतूहल करते हैं, चिर-दीक्षित हैं, तत्त्वों के ज्ञाता हैं, ऐसे मुनि आर्यिकाओं के आचार्य होते हैं ।