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परगणस्थ आगंतुक मुनि को क्या करना चाहिए ?
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कबहुणा भणिदेण दु जा इच्छा गणधरस्स सा सव्वा
कादव्वा तेण भवे एसेव विधी दु सेसाणं ॥186॥
अन्वयार्थ :
बहुत कहने से क्या, पर-गण में स्थित मुनि को, उन आचार्य को जो इष्ट है सभी प्रकार से वही करना चाहिए । यही विधि शेष मुनियों के लिए भी है ।