+ सूत्रों के अध्ययन का प्रयोजन -
एदमणयारसुत्तं दसविध पद विणयअत्थसंजुत्तं ।
जो पढइ भत्तिजुत्तो तस्स पणस्संति पावाइं ॥772॥
णिस्सेसदेसिदमिणं सुत्तं धीरजणबहुमदमुदारं ।
अणगार भावणमिणं सुसमणपरिकित्तणं सुणह ॥773॥
अन्वयार्थ : इन विनय और अर्थ से संयुक्त दस प्रकार के पदरूप जनगार सूत्रों को जो भक्ति सहित पढ़ता है उसके पाप नष्ट हो जाते हैं । ये सूत्र नि:शेष शोभनाचार आदि सब सिद्धान्तों के दर्शक हैं, धीर जनों से बहुमान्य हैं, उदार हैं और सुश्रमण की कीर्ति करने वाले हैं। इन अनगार भावनाओं को (शृणुत) तुम सुनो ।