+ निर्ग्रन्थ महर्षि -
णग्गंथमहरिसीणं अणयारचरित्त जुत्तिगुत्ताणं ।
णिच्छिदमहातवाणं वोच्छामि गुणे गुणधराणं ॥774॥
अन्वयार्थ : अनगार के चरित्र से सहित महातप में लगे हुए, गुणों को धारण करने वाले निर्ग्रन्थ महर्षियों के गुणों को कहते हैं ।