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मुनियों का निर्मल स्वरूप
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णिम्मालियसुमिणाविय धणकणयसमिद्धबंधवजणं च ।
पयहंति वीर पुरिसा विरत्तकामा गिहावासे ॥776॥
अन्वयार्थ :
गृहवास विरक्त हुए वीर पुरुष उतारी हुई माला के समान धन सुवर्ण से समृद्ध बांधव जन को छोड़ देते हैं ।