
जम्मणमरणुव्विगा भीदा संसारवासमसुभस्स ।
रोचंति जणवरमदं वापयणं वड्ढमाणस्स ॥777॥
पवरवरधम्मतित्थं जिणवरवसहस्स वड्ढमाणस्स ।
तिविहेण सद्दहंति य णत्थि इदो उत्तरं अण्णं ॥778॥
अन्वयार्थ : जो जन्म मरण से उद्विग्न हैं, संसारवास में दु:ख से भयभीत हैं, वे जिनवर के मतरूप वर्धमान के प्रवचन का श्रद्धान करते हैं और जिनवर, वृषभदेव और वर्धमान के श्रेष्ठ धर्मतीर्थ का मन वचन काय से श्रद्धान करते हैं । क्योंकि इससे श्रेष्ठ अन्य तीर्थ नहीं है ।