
उच्छाहणिच्छिदमदी ववसिदववसाय वद्धकच्छा य ।
भावाणुरायरत्ता जिणपण्णात्तम्मि धम्मम्मि ॥779॥
अन्वयार्थ : अनशनादिक बारह तपों में पूर्ण तत्पर होने वाले, हमेशा चारित्रचरण में प्रयत्नशील रहने वाले, बद्धक-कर्मों का नाश करने के कार्य में अपने मन को सदैव तत्पर रखने वाले, परमार्थहित करने वाले,अर्हद्भक्ति में अनुरक्त रहने वाले अथवा जीवादि विषयक जो श्रद्धान करते हैं ।