
धम्ममणुत्तरमिमं कम्ममलपडलपाडयं जिणक्खादं।
संवेगजायसड्ढा गिण्हंति महव्वदा पंच ॥
अन्वयार्थ : यह जिनधर्म उत्तमक्षमादि दशलक्षण स्वरूप है और अद्वितीय है। कर्म पटलों का नाश करने में समर्थ है। जिन भगवान ने इसका निरूपण आगम में किया हैं। वैराग्य से र्हिषत होकर मुनिराज महाव्रतों को धर्म समझकर धारण करते हैं।