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अन्वय मुख से महाव्रतों का वर्णन
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ते सव्वगंथमुक्का अममा अपरिग्गहा जहाजादा ।
वोसट्टचत्तदेहा जिणवरधम्मं समं णेंति ॥783॥
अन्वयार्थ :
वे ग्रंथों
(परिग्रहों)
से रहित, निर्भय, निष्परिग्रही यथाजात रूपधारी, संस्कार से रहित मुनि जिनवर के धर्म को साथ में ले जाते हैं ।