+ सर्व ग्रंथों का त्याग किस प्रकार? -
सव्वारंभणियत्ता जुत्ता जिणदेसिदम्मि धम्मम्मि ।
ण य इच्छंति ममत्तिं परिग्गहे वालमित्तम्मि ॥784॥
अन्वयार्थ : जिस कारण वे मुनि असि, मषि, कृषि, वाणिज्य आदि व्यापार से रहित हो चुके हैं, जिनेन्द्र देव कथित धर्म में उद्युक हैं तथा श्रामण्य के अयोग्य बाल मात्र भी परिग्रह के विषय में ममता नहीं करते हैं क्योंकि वह सर्वग्रंथ से विमुक्त हैं ।