+ निर्मम किस प्रकार? -
अपरिग्गहा अणिच्छा संतुट्ठा सुट्ठिदा चरित्तम्मि ।
अवि णीए वि सरीरे करेंति मुणी ममत्तिं ते ॥785॥
अन्वयार्थ : जो मुनि अपरिग्रही हैं, सन्तुष्ट हैं तथा चारित्र में स्थित हैं वे मुनि अपने शरीर में भी ममत्व नहीं करते हैं ।