
त्ते णिम्ममा सरीरे जत्थत्थमिदा वसंति अणिएदा ।
सवणा अप्पडिबद्धा विज्जू जह दिट्ठणट्ठा वा ॥786॥
अन्वयार्थ : जो अपने शरीर में भी निर्मोही हैं । चलते हुए जिस स्थान पर सूर्य अस्त हो जाता है वही पर ठहर जाते हैं किसी से कुछ अपेक्षा नहीं करते हैं, वे यति किसी से बंधे नहीं रहते हैं । स्वतन्त्र होते हैं । बिजली के समान दिखकर विलीन हो जाते हैं ।