+ वसति शुद्धि -
गामेयरादिवासी णयरे पंचाहवासिणो धीरा ।
सवणा फासुविहारी विवित्तएगंतवासी य ॥787॥
अन्वयार्थ : जो बाड़ से वेष्टित है उसे ग्राम कहते हैं, उसमें एक रात्रि निवास करते हैं, क्योंकि एक रात्रि में ही वहाँ का सर्व अनुभव आ जाता है । चार गोपुरों से सहित को नगर कहते हैं । वहाँ पर पाँच दिवस ठहरते हैं क्योंकि पाँच दिन में ही वहाँ के सर्व तीर्थ आदि यात्राओं की सिद्धि हो जाती है । प्रासुक विहारी—सावद्य का परिहार करने में तत्पर हैं अर्थात् जन्तु रहित स्थानों में विहार करने वाले हैं । ग्राम में एक रात्रि और नगर में पाँच दिन रहते हैं, क्योंकि अधिक रहने से औद्देशिक आदि दोष हो जाते हैं और मोह आदि भी हो जाता है इसलिए वे अधिक नहीं रहते हैं ।