+ एकान्त में रहने से सुखलाभ कैसे? -
एगंतं मग्गंता सुसमणा वरगंधहत्थिणो धीरा ।
सुक्कज्झाणरदीया मुत्तिसुहं उत्तमं पत्ता ॥788॥
अन्वयार्थ : जैसे गन्धहस्ती एकान्त का आश्रय लेकर सुखी होते हैं वैसे ही महामुनि एकान्त का आश्रय लेकर सुखी होते हैं क्योंकि वहाँ पर वह शुक्ल ध्यान को ध्याते हैं ।