
सज्झायझाणजुता रिंत्त ण सुवंति ते पायमं तु ।
सुत्तत्थ चिंतंता विद्दाय वसं ण गच्छंति ॥796॥
अन्वयार्थ : स्वाध्याय और ध्यान में तत्पर हुए वे मुनि प्रथम व अंतिम प्रहर में रात्रि में नहीं सोते हैं । वे सूत्र और अर्थ का चिन्तवन करते हुए निद्रा के वश में नहीं होते हैं ।