+ बारह-भावनाओं के नाम -
अद्धुव असरण भणिया संसारामेगमण्णमसुइत्तं
आसव-संवरणामा णिज्जर-लोयाणुपेहाओ ॥2॥
इय जाणिऊण भावह दुल्लह-धम्माणुभावणा णिच्चं
मण-वयण-कायसुद्धी एदा दस दोय भणिया हु ॥3॥
अन्वयार्थ : [एदा] ये [अद्धुव] अध्रुव / अनित्‍य [असरण] अशरण [संसारामेगमण्‍णमसुइत्तं] संसार, एकत्‍व, अन्‍यत्‍व, अशुचित्‍व [आसव] आस्रव [संवरणामा] संवर [णिज्‍जरलायाणुपेहाओ] निर्जरा, लोक अनुप्रेक्षायें [दुल्‍लह] बोधि दुर्लभ [धम्‍माणुभावणा] धर्म भावना सह [दस दोय] बारह भावना [भणिया] कही गई हैं [इस जाणिऊण] इन्‍हें जानकर [मणवयणकायसुद्धी] मन-वचन-काय की शुद्धी पूर्वक [णिच्‍चं] निरन्‍तर [भावह] भावो ।

  छाबडा 

छाबडा :

ये बारह भावनाओं के नाम कहे गये हैं, जिनका विशेष अर्थरूप कथन तो यथास्‍थान होगा ही परन्‍तु ये नाम भी सार्थ हैं, इनका अर्थ किस प्रकार है ? - अध्रुव तो अनित्‍य को कहते हैं। जहाँ कोई शरण नहीं सो अशरण । भ्रमण को संसार । जहाँ कोई दूसरा नहीं सो एकत्‍व । जहाँ सबसे भिन्‍नता सो अन्‍यत्‍व । मलिनता को अशुचित्‍व । कर्म के आने को आस्रव । कर्म के आने को रोके सो संवर । कर्मे का झरना सो निर्जरा । जिसमें छह द्रव्‍य पाये जाय सो लोक । अति‍ कठिनता से प्राप्‍त होय सो दुर्लभ । संसार उद्धार करे सो वस्‍तु-स्‍वरूपादिक धर्म । इसप्रकार इनका अर्थ है ।

पहले अध्रुव अनुप्रेक्षा का सामान्‍य स्‍वरूप कहते हैं :-