+ इन्द्रियों की क्षणिकता -
सुरधणु-तडिव्व चवला इंदिय-विसया सुभिच्च-वग्गा य
दिट्ठ-पणट्ठा सव्वे तुरय-गया रहवरादी य ॥7॥
अन्वयार्थ : [इंदियविसया] इन्द्रियों के विषय [सुभिच्‍चवग्‍गा] अच्‍छे सेवकों का समूह [य] और [तुरयगयारहवरादीया] घोड़े, हाथी, रथ आदिक [सव्‍वे] ये सब ही [सुरधणुतडिव्‍वचवला] इन्‍द्रधनुष तथा बिजली के समान चंचल हैं [दिठ्टपणठ्टा] दिखाई देकर नष्‍ट हो जाने वाले हैं ।

  छाबडा 

छाबडा :

यह प्राणी, श्रेष्‍ठ इन्द्रियों के विषय, अच्‍छे नौकर, घोड़े, हाथी, र‍थआदिक की प्राप्ति से सुख मानता है सो ये सब क्षण-विनश्र्वर हैं इसलिये अविनाशी सुख को प्राप्‍त करने का उपाय करना ही योग्‍य है । अब बन्‍धु-जनों का संयोग कैसा है सो दृष्‍टान्‍त-पूर्वक कहते हैं -