छाबडा :
यह प्राणी बहुत कुटुम्ब परिवार पाता है तब अभिमान करके सुख मानता है, इस मद से अपने स्वरूप को भूल जाता है । यह बन्धुवर्ग का संयोग, मार्ग के पथिकजनों के समान है जिसका शीघ्र ही वियोग होता है । इसमें संतुष्ट होकर अपने असली स्वरूप को नहीं भूलना चाहिए । अब देह-संयोग को अस्थिर दिखाते हैं :- |