+ बंधुजनों का संयोग कैसा? -
पंथे पहिय-जणाणं जह संजोओ हवेइ खणमित्तं
बंधुजणाणं च तहा संजोओ अद्धुओ होइ ॥8॥
अन्वयार्थ : [जह] जैसे [पंथे] मार्ग में [पहियजणाणं] पथिक जनों का [संजोओ] संजोग [खणमित्तं] क्षणमात्र [हवेइ] होता है [तहा] वैसे ही (संसार में) [बंधुजणाणं] बंधुजनों का [संजोओ] संयोग [अद्धुओ] अस्थिर [होइ] होता है ।

  छाबडा 

छाबडा :

यह प्राणी बहुत कुटुम्‍ब परिवार पाता है तब अभिमान करके सुख मानता है, इस मद से अपने स्‍वरूप को भूल जाता है । यह बन्‍धुवर्ग का संयोग, मार्ग के पथिकजनों के समान है जिसका शीघ्र ही वियोग होता है । इसमें संतुष्‍ट होकर अपने असली स्‍वरूप को नहीं भूलना चाहिए । अब देह-संयोग को अस्थिर दिखाते हैं :-