अइलालिओ वि देहो ण्हाण-सुयंधेहिं विविह-भक्खेहिं
खणमित्तेण वि विहडइ जल-भरिओ आम-घडओव्व ॥9॥
अन्वयार्थ : [देहो] यह देह [ण्हाणसुयंधेहिं] स्नान तथा सुगन्धित पदार्थोसे सजाया हुआ भी [विविहभक्खेहिं] अनेक प्रकार के भोजनादि भक्ष्य पदार्थो से [अइलालिभो वि] अत्यन्त लालन पालन किया हुआ भी [जलभरिओ] जल से भरे हुए [आमघडओव्व] कच्चे घड़े की तरह [खणमित्तेण वि] क्षण-मात्र में ही [विहडइ] नष्ट हो जाता है ।
छाबडा
छाबडा :
ऐसे शरीर में स्थिर बुद्धि करना बड़ी भूल है । अब लक्ष्मी की अस्थिरता दिखाते हैं -
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