+ लक्ष्मी की अस्थिरता -
जा सासया ण लच्छी चक्कहराणं पि पुण्णवंताणं
सा किं बंधेइ रइं इयर-जणाणं अपुण्णाणं ॥10॥
अन्वयार्थ : [जा लच्‍छी] जो लक्ष्‍मी (सम्‍पदा) [पूण्‍णवंताणं चक्‍कहराणं पि] पुण्‍य के उदय सहित चक्रवर्तियों के भी [सासया ण] नित्‍य नहीं है [सा] वह (लक्ष्‍मी) [अपुण्‍णाणं इयरतणाणं] पुण्‍यहीन अथवा अल्‍प-पुण्‍यवाले अन्‍य लोगों से [किं रइं बंधेइ] कैसे प्रेम करे ?

  छाबडा 

छाबडा :

इस लक्ष्‍मी का अभिमान कर यह प्राणी प्रेम करता है सो वृथा हैं । आगे इसी अर्थ को विशेषरूप से कहते हैं :-