छाबडा :
कोई समझे कि मैं बड़ा कुलवान् हूँ, मेरे बड़ों की सम्पत्ति है, वो कहॉं जाती है ? तथा मैं धैर्यवान् हूँ कैसे गमाऊँगा ? तथा पण्डित हूँ, विद्वान् हूँ, मेरी कौन लेगा ? उलटा मुझको तो देगा ही तथा मैं सुभट हूँ, कैसे किसी को लेने दूँगा । तथा मैं पूजनीक हूँ मेरी कौन लेवे है ? तथा मैं धर्मात्मा हूँ, धर्म से तो आती है, आई हुई कहाँ जाती है ? तथा मैं बड़ा रूपवान हूँ, मेरा रूप देखकर ही जगत प्रसन्न है, लक्ष्मी कहॉं जाती है ? तथा मैं सज्जन हूँ, परोपकारी हूँ, कहॉं जायगी ? तथा मैं बड़ा पराक्रमी हूँ, लक्ष्मी को बढ़ाऊँगा, जाने कहाँ दूँगा ? ये सब विचार मिथ्या हैं । यह लक्ष्मी देखते-देखते नष्ट हो जाती है । किसी के रक्षा करने से नहीं रहती । अब कहते है कि जो लक्ष्मी मिली है उसका क्या करना चाहिये ? सो बतलाते हैं :- |