+ बचाकर रखने वाले का धन पर के लिए -
अणवरयं जो संचदि लच्छिं ण य देदि णेय भुंजेदि
अप्पणिया वि य लच्छी पर-लच्छि-समाणिया तस्स ॥15॥
अन्वयार्थ : [जो] जो पुरूष [लच्छिं] लक्ष्‍मी को [अणवरयं] निरंतर [संचदि] संचित करता है [णय य देदि] न दान करता है [णेय भुञ्जेदि] न भोगता है [तस्‍स अप्‍प्‍णिया वि य लच्‍छी] उसके अपनी लक्ष्‍मी भी [पर लच्छिसमाणिया] पर की लक्ष्‍मी के समान है ।

  छाबडा 

छाबडा :

जो लक्ष्‍मी को पाकर दान-भोग नहीं करता है, उसके वह लक्ष्‍मी, दूसरे की है । आप तो रखवाला (चौकीदार) है, लक्ष्‍मी को कोई दूसरा ही भोगेगा ।