लच्छी-संसत्त-मणो जो अप्पाणं धरेदि कट्ठेण सो राइ-दाइयाणं कज्जं साहेदि मूढप्पा ॥16॥
अन्वयार्थ : [जो] जो पुरूष [लच्छीसंसत्तमणो] लक्ष्मी में आसक्त चित्त होकर [अप्पाणं कठ्टेण धरेदि] अपनी आत्मा को कष्ट सहित रखता है [सो मूढप्पा राइददाइयाणं] राजा तथा कुटुम्बियों का [कज्जं साहेहि] कार्य सिद्ध करता है ।
छाबडा
छाबडा :
लक्ष्मी में आसक्त-चित्त होकर इसको पैदा करने के लिये तथा रक्षा करने के लिये अनेक कष्ट सहता है, सो उस पुरूष को तो केवल कष्ट ही फल होता है । लक्ष्मी को तो कुटुम्ब भोगेगा या राजा लेवेगा ।