अन्वयार्थ : [जो एवं जाणित्ता] जो पुरूष ऐसा जानकर [धम्मजुत्ताणं विहलियलोयाण] धर्म-युक्त ऐसे निर्धन लोगों के लिये [णिरवेक्खो] प्रत्युपकार की इच्छा से रहित होकर [तं देदि] उस लक्ष्मी को देता है [हु तस्स जीवियं सहलं हवे] निश्र्चय से उसी का जन्म सफल होता है ।
छाबडा
छाबडा :
अपना प्रयोजन सिद्ध करने के लिए तो दान देनेवाले संसार में बहुत हैं । जो प्रत्युपकार की इच्छा से रहित होकर धर्मात्मा तथा दुखी-दरिद्र पुरूषों को धन देते हैं, ऐसे विरले है उनका जीवन सफल है ।