अन्वयार्थ : (हे भव्यजीव !)[सव्वे विसऐ भंगुरे मुणिऊण] समस्त विषयों को विनाशीक जानकर [महामोहं चइऊण] महामोह को छोड़कर [मणं णिव्विसयं कुणह] अपने मन को विषयों से रहित करो [जेण उत्तमं सुहं लहइ] जिससे उत्तम सुख को प्राप्त करो ।
छाबडा
छाबडा :
पूर्वोक्त प्रकार से संसार, देह, भोग, लक्ष्मी इत्यादिक को अस्थिर-रूप दिखाये, उनको सुनकर जो अपने मन को विषयों से छुड़ाकर उनको अस्थिररूप भावेगा सो भव्य-जीव सिद्ध-पद के सुख को पावेगा ।