
तत्थ भवे किं सरणं जत्थ सुरिंदाण दीसदे विलओ
हरि-हर-बंभादीया कालेण य कवलिया जत्थ ॥23॥
अन्वयार्थ : [जत्थ सुरिंदाण विलओ दीसदे] जहाँ देवों के इन्द्र का नाश देखा जाता है [जत्थ हरिहरबंभादीया कालेण य कवलिया] जहां हरि , हर , ब्रह्मा , आदि शब्द से बड़े बड़े पदवी-धारक सब ही काल द्वारा ग्रसे गये, [तत्थ किं सरणं भवे] वहां कौन शरण होवे ?
छाबडा
छाबडा :
शरण उसको कहते हैं जहाँ अपनी रक्षा हो सो संसार में जिनका शरण विचारा जाता है वे ही काल-पाकर नष्ट हो जाते हैं वहाँ कैसा शरण ?
अब इसका दृष्टांत कहते हैं -
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