अन्वयार्थ : [जइ मियमाणं पि मणुस्मं] यदि मरते हुए मनुष्य को [देवो वि य मंतो तंतो य खेत्तपालो य रक्खदिं] कोई देव, मंत्र, तंत्र, क्षेत्रपाल उपलक्षण से संसार जिनको रक्षक मानता है सो सब ही रक्षा करने वाले हों [तो मणुया अक्खया होंति] तो मनुष्य अक्षय होवें (कोई भी मरे नहीं) ।
छाबडा
छाबडा :
लोग जीवित रहने के निमित्त देवपूजा, मंत्र-तंत्र, औषधि आदि अनेक उपाय करते हैं परन्तु निश्चय से विचार करें तो जीवित दिखता ही नहीं है, वृथा ही मोह से विकल्प पैदा करते हैं ।