आउ-क्खएण मरणं आउं दाउं ण सक्कदे को वि तम्हा देविंदो वि य मरणउ ण रक्खदे को वि ॥28॥
अन्वयार्थ : [आयुक्खयेण मरणं] आयु-कर्म के क्षय से मरण होता है [आउं दाऊण सक्कदे को वि] और आयु-कर्म किसी को कोई देने में समर्थ नहीं [तह्मा देविंदो वि य] इसलिये देवों का इन्द्र भी [मरणउ को वि ण रक्खदे] मरने से किसी की रक्षा नहीं कर सकता है ।
छाबडा
छाबडा :
मरण आयु के पूर्ण होने से होता है और आयु कोई किसी को देने में समर्थ नहीं, तब रक्षा करनेवाला कौन ? इसका विचार करो ।