
अप्पाणं पि चवंतं जइ सक्कदि रक्खि दुं सुरिंदो वि
तो किं छंडदि सग्गं सव्वुत्तम-भोय-संजुत्तं ॥29॥
अन्वयार्थ : [जइ सुरिंदो वि] यदि देवों का इन्द्र भी [अप्पाणं पि चवंतं] अपने को चयते हुए [रक्खिदुं सक्कदि] रोकने में समर्थ होता [तो सव्वुत्तम-भोयसंजुत्तं] तो सर्वोत्तम भोगों से संयुक्त [सग्गं किं छंडदि] स्वर्ग को क्यों छोड़ता ?
छाबडा
छाबडा :
सर्व भोगों का निवास स्थान अपना वश चलते कौन छोड़े ?
अब परमार्थ शरण दिखाते हैं -
|