अन्वयार्थ : (हे भव्य)[परमसद्धाए] परम श्रद्धा से [दंसणणाणचरित्तं] दर्शन-ज्ञान-चारित्र स्वरूप [सरणं सेवेहि] शरण का सेवन कर । [संसारे संसरंताणं] इस संसार में भ्रमण करते हुए जीवों को [अण्णं किं पि ण सरणं] अन्य कुछ भी शरण नहीं हैं ।
छाबडा
छाबडा :
सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र अपना स्वरूप है सो यह ही परमार्थरूप (वास्तव में) शरण है । अन्य सब अशरण है, निश्चय-श्रद्धापूर्वक यह ही शरण ग्रहण करो, ऐसा उपदेश है ।