छाबडा :
परमार्थ से विचार करें तो आप ही अपनी रक्षा करनेवाला है तथा आप ही घातनेवाला है । क्रोधादिरूप परिणाम करता है तब शुद्ध चैतन्य का घात होता है और क्षमादि परिणाम करता है तब अपनी रक्षा होती है । इन भावों से जन्म-मरण से रहित होकर अविनाशीपद प्राप्त होता है । |