+ नरक-गति के दुःख -
पाव-उदयेण णरए जायदि जीवो सहेदि बहु-दुक्खं
पंच-पयारं विविहं अणोवमं अण्ण-दुक्खेहिं ॥34॥
अन्वयार्थ : [जीवों पावोदयेण णरए जायदि] यह जीव पाप के उदय से नरक में उत्‍पन्‍न होता है [विविहं अण्‍णदुक्‍खेहिं पंचपयारं अणोवमं बहुदुक्‍खं सहेदि] वहाँ कई तरह के, पंच-प्रकार से, उपमारहित ऐसे बहुत से दु:ख सहता है ।

  छाबडा 

छाबडा :

जो जीवों की हिंसा करता है, झूठ बोलता है, परधन हरता है, पर-स्‍त्री तकता है, बहुत आरंभ करता है, परिग्रह में आसक्‍त होता है, बहुत क्रोधी, प्रचुर मान, अति क‍प‍टी, अति कठोर भाषी, पापी, चुगल, कृपण, देव-शास्‍त्र-गुरू का निंदक, अधम, दुर्बुद्धि, कृतघ्‍नी और बहुत शोक / दु:ख करने ही की जिसकी प्रकृति हो ऐसा जीव होता है, सो मर कर नरक में उत्‍पन्‍न होता है, अनके प्रकार के दु:ख को सहता है । अब पाँच प्रकार के दु:खों को कहते हैं -