+ नरक में पांच प्रकार के दुःख -
असुरोदीरिय-दुक्खं सारीरं माणसं तहा विविहं
खित्तुब्भवं च तिव्वं अण्णो ण्ण-कयं च पंचविहं ॥35॥
अन्वयार्थ : [असुरोदीरियदुक्‍खं] असुरकुमार देवों द्वारा उत्‍पन्‍न किया हुआ दु:ख, [सारीरं माणसं] शरीर से उत्‍पन्‍न हुआ और मन से हुआ [तहा विविहं खित्तुब्‍भवं] तथा अनेक प्रकार क्षेत्र से उत्‍पन्‍न हुआ [च अण्‍णोणकयं पंचवि‍हं] और परस्‍पर किया हुआ ऐसे पाँच प्रकार के दु:ख हैं ।

  छाबडा 

छाबडा :

तीसरे नरक तक तो
  1. असुरकुमार देव कुतूहल-मात्र जाते हैं, वे नारकियों को देखकर आपस में लड़ाते हैं, अनेक प्रकार से दु:खी करते हैं ।
  2. नारकियों का शरीर ही पाप के उदय से स्‍वयमेव अनेक रोगों सहित, बुरा, घिनावना, दु:खमयी होता है ।
  3. उनका चित्त भी महाक्रूर दु:खरूप ही होता है ।
  4. नरक का क्षेत्र महाशीत उष्‍ण, दुर्गन्‍ध और अनेक उपद्रव सहित होता हैं ।
  5. नार‍की जीव आपस में बैर के संस्‍कार से छेदन, भेदन, मारन, ताड़न और कुम्‍भीपाक आदि करते हैं ।
वहाँ का दु:ख उपमा रहित हैं ।

आगे इसी दु:ख को विशेष रूपसे कहते हैं -