+ इसी को विशेष कहते हैं -
छिज्जइ तिलतिलमित्तं भिंदिज्जइ तिल तिलंतरं सयलं
वज्जग्गीए कढिज्जइ णिहिप्पए पूयकुंडम्हि ॥36॥
अन्वयार्थ : (नरक में) [तिलतिलमित्तं छिज्‍ज] तिल-तिल-मात्र छेद देते हैं [सयलं तिलतिलं भिंदिल्‍लइ] शकल कहिये खण्‍ड को भी तिल-तिल-मात्र भेद देते हैं [बज्‍जग्गिए कढिज्‍जइ] वज्राग्नि में पकाते हैं [पूयकुण्‍डम्हि णिहिप्‍पए] राध के कुण्‍ड में फेंक देते हैं ।

  छाबडा 

छाबडा :

नरक के दु:ख वर्णणातीत हैं ।