+ नरक के दुःख कहना संभव नहीं -
इच्चेवमाइ-दुक्खं जं णरए सहदि एयसमयम्हि
तं सयलं वण्णेदुं ण सक्कदे सहस-जीहो वि ॥37॥
अन्वयार्थ : [इच्‍चमाइ जं दुक्‍खं] इति कहिये ऐसे एवमादि कहिये पूर्व गाथा में कहे गए उनको आदि लेकर जो दु:ख उनको [णरए एयसमयम्हि सहदि] नरक में एक समय में जीव सहता है [तं सयलं वण्‍णेदुं] उन सब का वर्णन करने के लिये [सहसज्रीहो वि ण सक्‍कदे] हजार जीभवाला भी समर्थ नहीं होता है ।

  छाबडा 

छाबडा :

इस गाथा में नरक के दु:ख वचन द्वारा अवर्णनीय है ऐसा कहा हैं ।

अब कहते हैं कि नरक का क्षेत्र तथा नारकियों के परिणाम दु:खमयी ही हैं -