अन्वयार्थ : [णरये खित्तसहावेण सव्वं पि दुक्खदं असुहं होदि] नरक में क्षेत्र स्वभाव से सब ही कारण दु:खदायक तथा अशुभ हैं । [णेरइया सव्वकालं अण्णीण्णं कुविदा होंति] नारकी जीव सदा काल परस्पर में क्रोधित होते रहते हैं ।
छाबडा
छाबडा :
क्षेत्र तो (उपचार के) स्वभाव से दु:खरूप हैं आपस में क्रोधित होते हुए वह उसको मारता है, वह उसको मारता है इस तरह निरन्तर दु:खी ही रहते हैं ।