अण्ण-भवे जो सुयणो सो वि य णरये हणेइ अइ-कुविदो एवं तिव्व-विवागं बहु-कालं विसहदे दुक्खं ॥39॥
अन्वयार्थ : [अण्णभवे जो सुयणो] पूर्वभव में जो सज्जन कुटुम्ब का था [सो वि य णरये अइकुविदो हणेइ] वह भी नरक में क्रोधित होकर घात करता है [एवं तिव्वविवागं दु:ख बहुकालं विसहदे] इसप्रकार तीव्र है विपाक जिसका ऐसा दु:ख बहुत काल तक नारकी सहता हैं ।
छाबडा
छाबडा :
ऐसे दु:ख कई सागरों तक सहता है, आयु पूरी हुए बिना वहाँ से निकलना नहीं होता है ।
अब तिर्यंचगति सम्बन्धी दु:खों को साढ़े चार गाथाओं में कहते हैं -