+ पाप से दुखी, फिर भी पुण्य नहीं करता -
पावेण जणो एसो दुक्कम्म-वसेण जायदे सव्वो
पुणरवि करेदि पावं ण य पुण्णं को वि अज्जेदि ॥47॥
अन्वयार्थ : [एसो सव्‍वो जणो पावेण दुक्‍कम्‍म-वसेण जायदे] इसप्रकार सब ही दुःख:रूप कर्म (असाता-वेदनीय, नीच-गोत्र, अशुभनाम, आयु आदि) के वश से दुःख सहता है [पुणरवि करेदि पावं] तो भी फिर पाप ही करता है [ण य पुण्‍णं को वि अज्‍जेदि] कुछ भी पुण्य (पूजा, दान, व्रत, तप ध्यानादि) को पैदा नहीं करता ।

  छाबडा