
विरलो अज्जदि पुण्णं सम्मादिट्ठी वएहिं संजुत्तो
उवसमभावे सहिदो णिंदण-गरहाहिं संजुत्तो ॥48॥
अन्वयार्थ : [सम्मादिट्ठी वएहिं संजुत्तो] सम्यग्दृष्टि और व्रतों से संयुक्त [उवसमभावे सहिदो] उपशम भाव सहित [ णिंदणगरहाहि संजुत्तो] निंदा , गर्हा इन दोनों से युक्त [विरलो पुण्णं अज्जदि] विरला ही ऐसा जीव है जो पुण्य प्रकृतियों का बंध करता है ।
छाबडा