
पुण्ण-जुदस्स वि दीसदि इट्ठ-विओयं अणिट्ठ-संजोयं
भरहो वि साहिमाणो परिज्जिओ लहुय-भाएण ॥49॥
अन्वयार्थ : [पुण्णजुदस्स वि इट्ठविओयं दीसइ] पुण्य उदय सहित पुरूषों के भी इष्ट-वियोग, अनिष्ट-संयोग देखा जाता है [साहिमाणो भरहो वि लहुयभायेण परिज्जिओ] अभिमान सहित भरत-चक्रवर्ती भी छोटे भाई बाहुबली से पराजित हुआ ।
छाबडा
छाबडा :
कोई समझता होगा कि जिनके बड़ा पुण्य का उदय है उनके तो सुख है सो संसार में तो सुख किसी के भी नहीं है । भरत चक्रवर्ती जैसे भी अपमानादि से दु:खी ही हुए तो औरों की क्या बात ?
आगे इसी अर्थ को दृढ़ करते हैं -
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