+ स्त्री / पुत्र / रोग सम्बन्धी दुःख -
कस्स वि णत्थि कलत्तं अहव कलत्तं ण पुत्त-संपत्ती
अह तेसिं संपत्ती तह वि सरोओ हवे देहो ॥51॥
अन्वयार्थ : [कस्‍स वि कलत्तं] किसी मनुष्‍य के तो स्‍त्री नहीं हैं [अहव कलत्तं पुत्तसंपत्ती ण] किसी के यदि स्‍त्री हैं तो पुत्र की प्राप्ति नहीं है [अह‍ तेसिं संपत्ती] किसी के पुत्र की प्राप्ति है [तह वि सरोओ हवे देहो] तो शरीर रोग सहित है ।

  छाबडा