+ निर्धनता / मरण का दुःख -
अह णीरोओ देहो तो धण-धण्णाण णेय संपत्ती
अह धण-धण्णं होदि हु तो मरणं झत्ति ढुक्केदि ॥52॥
अन्वयार्थ : [अह णीरोओ देहो] यदि किसी के नीरोग शरीर भी हो [तो धणधण्‍णाण णेय सम्‍पत्ति] तो धन-धान्‍य की प्राप्ति नहीं है [अह धणधण्‍णं होदि हु] यदि धन-धान्‍य की भी प्राप्ति हो जाय [तो मरणं झत्ति ढुक्‍केइ] तो शीघ्र-मरण हो जाता है ।

  छाबडा