
एवं मणुय-गदीए णाणा-दुक्खाइ विसहमाणो वि
ण वि धम्मे कुणदि मइं आरंभं णेय परिचयइ ॥55॥
अन्वयार्थ : [एवं मणुयगदीए] इस तरह मनुष्य-गति में [णाणा दुक्खाइं] अनेक प्रकार के दु:खों को [विसहमाणो वि] सहता हुआ भी [धम्मे मइं ण वि कुणदि] धर्माचरण में बुद्धि नहीं करता है [आरंभं णेय परिचयइ] पापारंभ को नहीं छोड़ता है ।
छाबडा