+ कर्म-वशता -
सत्तू वि होदि मित्तो मित्तो वि य जायदे तहा सत्तू
कम्‍मविवायवसादो एसो संसार-सब्भावो ॥57॥
अन्वयार्थ : [कम्‍मविवायवसादो] कर्म विपाक (उदय) के वश से [सत्तू वि मित्तो होदि] शत्रु भी मित्र हो जाता है [तहा मित्तो वि य सत्तु जायदे] और मित्र भी शत्रु हो जाता है [एसो संसारसब्‍भावो] ऐसा संसार का स्‍वभाव है ।

  छाबडा 

छाबडा :

पुण्‍यकर्म के उदय से शत्रु भी मित्र हो जाता है और पापकर्म के उदय से मित्र भी शत्रु हो जाता हैं ।

अब देवग‍‍ति का स्‍वरूप कहते हैं -



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