
अह कह वि हवदि देवा तस्स वि जाएदि माणसं दुक्खं
दट्ठूण महद्धीणं देवाणं रिद्धि-संपत्ती ॥58॥
अन्वयार्थ : [अह कहवि देवो हवदि] अथवा बड़े कष्ट से देव भी होता है तो [तस्स] उसके [महद्धीणं देवाणं] बड़े ऋद्धिधारक देवों की [रिद्धिसंपत्तीदट्ठूण] ऋद्धि सम्पत्ति को देखकर [माणसं दुक्खं जायेदि] मानसिक दु:ख उत्पन्न होता है ।
छाबडा