
इट्ठ-विओगं दुक्खं होदि महद्दीणं विसय-तण्हादो
विसय-वसादो सुक्खं जेसिं तेसिं कुतो तित्ती ॥59॥
अन्वयार्थ : [विसयतण्हादो] विषयों की तृष्णा से [महद्धीण] महर्द्धिक देवों को भी [इट्ठविओगं दुक्खं होदि] इष्ट वियोग का दु:ख होता है [जेसिं विसयवसादो सुक्खं] जिनके विषयों के आधीन सुख है [तेसिं कुतो तित्ती] उनके कैसे तृप्ति होवे ?
छाबडा