+ संसार में सभी जगह दुःख -
एवं सुट्ठु-असारे संसारे दुक्ख-सायरे घोरे
किं कत्थ वि अत्थि सुहं वियारमाणं सुणिच्छयदो ॥62॥
अन्वयार्थ : [एवं सुट्ठु-असारे] इस तरह सब प्रकार से असार [दुक्‍खसायरे घोरे संसारे] दु:ख के सागर भयानक संसार में [सुणिच्छयदो वियारमाणं] निश्चय से विचार किया जाय तो [किं कत्‍थ वि सुहं अत्थि] क्‍या कहीं भी कुछ सुख है ?

  छाबडा 

छाबडा :

चार-गति-रूप संसार है और चारों ही गतियाँ दु:ख-रूप हैं तब सुख कहाँ ?

अब कह‍ते हैं कि यह जीव पर्याय-बुद्धि है जिस योनि में उत्‍पन्‍न होता है वही सुख मान लेता है -